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स्व0 श्रीमती विमला देवी जी

प्रेरणाश्रोत एवं पथप्रर्दशक

स्व0 श्रीमती विमला देवी जी के विचार

इनका जन्म धार्मिक, बौद्धिक, राजनैतिक व मो़क्ष की नगरी तीर्थराज प्रयाग (इलाहाबाद) में गंगा यमुना व सरस्वती के संगम यानि त्रिवेणी के तट पर दारागंज में हुआ था। उनकी माता का नाम स्व0 श्रीमती अम्बा देवी व पिता स्व0 श्री विश्वनाथजी था। उनका विवाह प्रयाग में ही श्री राम कृश्ण पुत्र स्व0 श्री घूरेलाल जी व माता स्व0 श्रीमती रामदुलारी जी के साथ हुआ था। वह बचपन से ही धार्मिक, दयावान, दानी व बहुत ही भावुक एंव कर्तव्य निश्ठ प्रव्त्ति की एक सशक्त स्त्री थी। उन्हे झूठे कर्तव्यविहीन व संस्कारविहीन व्यक्तियों से शख्त नफरत थी। उन्हे भारतीय संस्कृति व सामूहिक परिवार में पूर्णतः विश्वास था। उन्होने अपना पूरा जीवन अपनी क्षमता के अनुसार परिवार व समाज को एक सूत्र में बांध कर समूह में चलने का प्रयास किया और विशम व विरोधाभाश परिस्थतियोें में भी अपने जीते जी उसे कभी बिखरने नहीं दिया । उनका मानना था कि एक व्यक्ति से परिवार नहीं बनता है, परिवार व्यक्तियों के समूह से बनता है जहां किसी प्रकार की कोई वैमनस्यता, विभेद तथा ऊॅंच नींच व अमीरी गरीबी का भेद भाव न हो एवं प्रत्येक व्यक्ति को अपने कर्तव्यों का बोध हो। उनका यह भी मानना था कि एक परिवार सबके आपसी प्रेम, सम्मान्, सद्भाव एवं सहयोग से चलता है, जिस परिवार में एक दूसरे के प्रति यथायोग्य सहयोग प्रेम, आत्मीयता, संवेदना, व सद्भाव नहीं होता वहां परिवार बिखर जाता हैं तथा लोगों में वैमनस्यता, ईश्र्या व हिंसा और अपराध की प्रवृत्ति हावी होने लगती है। उन्होने हमेशा अपनी क्षमता के अनुसार गरीबों व असहायों की मदद की। यह दल उनकी सोच व प्रयास का नतीजा है।
आज वो हमारे बीच नहीं है। उनका सपना था कि इस देश को धर्म, जाति, भाशा, क्षेत्रवाद व अमीरी गरीबी से उपर उठाकर एक परिवार के रूप में परिभाशित व विकसित किया जाय एवं सबको बराबरी का व समान अवसर प्राप्त हो। जहां किसी प्रकार की कोई वैमनस्यता, विभेद तथा ऊॅंच नींच व अमीरी गरीबी का भेद भाव न हो।
आइये हम सब मिलकर उनके इस सपने को साकार करें। उनके इन्ही विचारों को प्रेरणा श्रोत के रूप में अंगीकार करके एक दृढ़ व मजबूत इच्छा शक्ति के साथ इस देश को एक परिवार के रूप में विकसित करने का संकल्प ले और सततृ प्रयत्नशील रहकर इस राश्ट्र को एक परिवार के रूप में विकसित करें जहां किसी प्रकार की कोई वैमनस्यता, विभेद तथा ऊॅंच नींच व अमीरी गरीबी का भेद भाव न हो बल्कि सबके अन्दर प्रेम, आत्मीयता, सहयोग, सहायता, संवेदना, सद्भाव तथा सबके प्रति यथा योग्य समव्यवहार के लक्षण विकसित व परिलक्षित हो। यदि हम सब ऐसा कर पायें तो सही मायने में उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजली होगी।

एकता की ओर तीन कदम
जय जन, जय भारत, जय जन, जय भारत, जय जन, जय भारत,